आप एक महिला के दर्द को महसूस नहीं कर सकते लेकिन आप भाषणों में कहते हैं एक महिला की प्रसव पीड़ा के समय जो दर्द होता है उसे मर्द झेल नहीं सकते। मैं आपके साथ हूं, मेरा मानना है कि उस दर्द को झेलने वाली महिला का सीधा संबन्ध हमसे या तो एक मां के रूप में हो सकता है या फिर एक पत्नी के रूप में हो सकता है। अब चूंकि पत्नी हमारे जीवन में बाद में आती है या नहीं भी आती है तो भी मां का संबन्ध तो सभी से होता है। इसलिए हमने इस भारत को मां माना। ‘मां’ शब्द को इस देश की संस्कृति से जोड़कर देखिए तभी इसका मर्म समझ में आएगा।
‘भारत माता की जय’ के उद्घोष के साथ समानता के भाव का जागरण होता है। एक बार कल्पना कर के देखिए, जिस जातिवाद से आप आजादी चाहते हैं उसी जातिवाद के निवारण के रूप में यह उद्घोष कितना काम आएगा। कोई भेदभाव नहीं, एक ही मां के सभी बेटे, कोई जाति-धर्म नहीं, किसी पूजा-पद्धति की बंदिशें नहीं, आखिर मां तो हर पूजा-पद्धति को मानने या न मानने वालों की होती है। ऐसी समानता किसी और तरीके से आ सकती है। इस विषय पर आप संघ को गाली भी नहीं दे सकते क्योंकि जातिगत विषय जमीनी स्तर पर कम से कम संघ में तो नहीं दिखते।
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